मेरी फरबरी
ना आंख लगती है तेरे बिना
ना दिल तेरे बिना लगता है
मुझे तो अब " फरबरी " भी
मातम का महीना लगता है
ना अच्छा लगे कुछ करना अब
ना खाना पीना लगता है
मुझे तो अब " फरबरी " भी
मातम का महीना लगता है
मैं तब उस फकीर को मान गया
वो एक नजर पहचान गया
कुछ तो "बच्चा" जग ने तूझसे
छीना छीना लगता है
मुझे तो अब " फरबरी " भी
मातम का महीना...
ना दिल तेरे बिना लगता है
मुझे तो अब " फरबरी " भी
मातम का महीना लगता है
ना अच्छा लगे कुछ करना अब
ना खाना पीना लगता है
मुझे तो अब " फरबरी " भी
मातम का महीना लगता है
मैं तब उस फकीर को मान गया
वो एक नजर पहचान गया
कुछ तो "बच्चा" जग ने तूझसे
छीना छीना लगता है
मुझे तो अब " फरबरी " भी
मातम का महीना...