...

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मैं सच्चाई हूँ

कोई तिलिस्म नहीं आफ़त हूँ,
शरारत के साथ शराफ़त हूँ...
कोई बेशक़ीमती हीरा नहीं,
मैं स्फटिक का पत्थर सही,
मैं थमे पानी की काई हूँ,
रुठे दिल की रुसवाई हूँ,
मुझे जाननशीं न समझ,
मैं तलब की गहराई हूँ...
कभी उन्स हूँ,
कभी ख़ाक हूँ,
कभी एक लंबी तन्हाई हूँ...
कभी रूह हूँ,
कभी लिबास हूँ,
कभी मुसलसल परछाई हूँ...
जो कल थी आज याद हूँ
एक मर्ज़ लाइलाज़ हूँ
कभी मोहब्बत की...