...

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मुझे याद हैं आखरी अलफ़ाज़ वो सिसक रहा था
मुझे याद हैं आखरी अलफ़ाज़ वो सिसक रहा था
बिछड़ने का कहते कहते वो जब हिचक रहा था

न जाने किन मुश्किलों मे आकर वो बहक रहा था
मेरे साथ तअल्लुक़ को बढाने मे झिझक रहा था

हाँ कुछ मजबूरियां रही होंगी ज़रूर उसकी
जिस क़दर सेहमा था ये दिल उस क़दर धड़क रहा था

न ऐसा दर्द और ग़म कभी गुज़रा था
मेरी आँखों के ज़रिये मेरा खून टपक रहा था

मेरा साथ उसका साथ एक पूरा ज़माना था
वो जब जा रहा था मेरा हाथ फड़क रहा था

तुम क्या समझोगे मोहब्बत हमने जी है सारिम
वो जब तक हमारे साथ था ये जिस्म महक रहा था
© Sarim