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"मयखाना"
#मयखाने
जब से हुई है मेरी आमद शहर में तेरे
मुझसे रूठे रूठे सारे मयखाने हैं
जब से हुई है आमद मेरी शहर में तेरे
रुठे रुठे से सारे नजारे है

मैं गुम हूँ
तेरे तसुब्बुर में
ये तेरी आँखो का नशा है
अब न मुझे खुद का
और न
मय खाने का पता है

फिजाओ में घुली खुशबू
से तेरा दीदार होता है
तेरे रुखसार से वसंत
और बहार होती है

ख्वावो में ही सही
तेरा दीदार तो है
तेरे न आने से
रुठे रुठे सारे नजारे
पर
मय खानो में बहार तो है

© रविन्द्र "समय"