सुनो....(सरहदैँ प्यार की )
सुनो..
क्या तुमने कभी सरहद देखी है,
सरहद के पार अपना घर होता है,
कुछ अजनबी सी खुशियां
कुछ अना सा गम होता है,
थोड़े पराये से अपने,
कुछ अपनों जैसे पराये होते है,
जब की सरहद के दूसरे पार
घायल करने वाला जानी दुश्मन,
कांटों वाली. बाढ,
खन्दगेँ और पहरेदार,
मैं भी आज एक ऐसी सरहद पर खड़ा हूं,
मेरी और तुम्हारी...
क्या तुमने कभी सरहद देखी है,
सरहद के पार अपना घर होता है,
कुछ अजनबी सी खुशियां
कुछ अना सा गम होता है,
थोड़े पराये से अपने,
कुछ अपनों जैसे पराये होते है,
जब की सरहद के दूसरे पार
घायल करने वाला जानी दुश्मन,
कांटों वाली. बाढ,
खन्दगेँ और पहरेदार,
मैं भी आज एक ऐसी सरहद पर खड़ा हूं,
मेरी और तुम्हारी...