...

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खामोशी की वजह
यूं तो जुबां ख़ामोश ही रहती है मेरी
गुस्ताख हूं, बस नज़रों के तीर चल जाते है

काटी नहीं है,मुंह में ही है,घबराई है
मुंह खोलना मना है,कातिल तीर चल जाते है

दीवारों के भी कान होते है, इल्म है मुझे
चू चा भी नहीं करता, सन्नाटे में दिन ढल जाते है,

सांस भी अब सिसक सिसक आती है
बड़ी चुभन है फिज़ा में, सन्नाटे में दिन ढल जाते है,

हितेश परमार "भ्रमर"