...

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(तोड़ लाओ चाँद की टहनियाँ)
जाओ तोड़ लाओ चाँद की टहनियाँ
और रोप दो उसे घर पर ....
ताकि उजाला हो जाए
उस अंधेरे कमरे में
जहाँ से तुम चाँद को तकते हुए
खिड़की बंद कर के आह भरते थे ना ....
हाँ बिल्कुल
उसी कमरे में जहाँ से तुम्हारे मन में
अनगिनत भावनाएँ उठती रहती है
कि तुम्हारे कमरे में भी उजाला हो सकता है
वो उजाला जो सिर्फ़ तुम्हारा हो और
कोई तुमसे ना छीन पाए
ऐसा करो उस उजाले को पहन लो
ताकि.....
तुम तुम हो जाओ

सिर्फ़ तुम

और फ़िर तुम किसी से अपना मिलान ना करोगे
ना ही ख़ुद को छोटा या कम ही आंका करोगे
इस बार गर चाँद को देखो तुम
तो खिड़की बंद ना कर देना
महसूस करना चाँदनी को ताकी
एक बार सोचो तो सही
चाँद की टहनियों को तोड़ने का
और कभी साहस बंधे तो तोड़ कर
रोप देना अपने कमरे में ।

( समाप्त)