...

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कभी यूं भी तो हो...!
कभी यूं भी तो हो....
दरिया का शाहिल हो
पूरे चांद की रात हो, कभी यूं भी तो हो,
कभी यूं भी तो हो...
परियों कि महफिल हो
कोई तुम्हारी बात हो और
तुम आओ, कभी यूं भी तो हो,
कभी यूं भी तो हो...
कि नर्म मुलायम ठंडी हवाएं
जब घर से तुम्हारे गुजरे...