...

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कभी यूं भी तो हो...!
कभी यूं भी तो हो....
दरिया का शाहिल हो
पूरे चांद की रात हो, कभी यूं भी तो हो,
कभी यूं भी तो हो...
परियों कि महफिल हो
कोई तुम्हारी बात हो और
तुम आओ, कभी यूं भी तो हो,
कभी यूं भी तो हो...
कि नर्म मुलायम ठंडी हवाएं
जब घर से तुम्हारे गुजरे
तुम्हारे खुशबू चुराए
मेरे घर ले आए, कभी यूं भी तो हो,
कभी यूं भी तो हो...
सुनी हर महफिल हो
कोई न मेरे साथ हो
और तुम आओ, कभी यूं भी तो हो,
कभी यूं भी तो हो...
ये बदल ऐसा टूट के बरसे
मेरे दिल कि तरह मिलने को
तुम्हरा दिल भी तरसे
तुम निकलो घर से, कभी यूं भी तो हो,
कभी यूं भी तो हो...
तनहाई हो, दिल हो, बुंदे हो
बरसात हो,और तुम आओ
कभी यूं भी तो हो,
कभी यूं भी तो हो.....!