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माँ मेरी पढ़ी लिखी नहीं
#माँ मेरी पढ़ी लिखी नहीं

माँ मेरी पढ़ी लिखी नहीं
दुनियादारी जाने नहीं
फिर भी अच्छा बुरा
सब पहचाने

कोई उसे कुछ कहे
बर्दाश्त ये कर लेती
एक कि चार
इसे सुनाना आया नहीं
अब करें तो क्या करें
माँ मेरी पढ़ी लिखी नहीं

गणित इसकी तनिक कमजोर
गिनती उसको आती नहीं
एक रोटी बोलो तो चार बना
खुश हो लेती
अब करें तो क्या करें
माँ मेरी पढ़ी लिखी नहीं

बीमार कोई पड़े
रातों की नींद हराम ये कर लेती
सुध बुध ये गँवा
सेवा में लग जाती
अब करें तो करें क्या
माँ मेरी पढ़ी लिखी नहीं

रूठ जाने पर भी
झट मान जाती
गलती हमारी कभी
दिल से ये न लगाती
क्या इसे कोई बात
बुरी लगती नहीं
अब करें तो क्या करें
माँ मेरी पढ़ी लिखी नहीं

सर्दी आते ही इसे
अपने बच्चों की चिन्ता सताती
ख्वाबों ख्यालों में भी
ये स्वेटर बुनती दिखती
क्या इसे सर्दी सताती नहीं
अब करें तो क्या करें
माँ मेरी पढ़ी लिखी नहीं

ओढ़ना पहनना इसे आता नहीं
जो मन...