...

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उलझन
उलझन है कैसी ये, मै खुद से ही सवाल करती हूं
जिन बातो पे मेरा काबू ही नहीं वो बाते बार बार करती हूं
टूटे है कई बार बिखरे भी है, मसाला फिर भी वहीं है दुनिया के रंग में हम बदले ही नहीं है।
थोड़ी नादानियां सबसे छुपा के दिल के कोने में आज भी समेट रखी है।
बदले रंग चाहे जितने जमाना हम आज भी बदले नहीं है।
अब ये सफर बस यू ही निभाना है जिन्दगी मिली
तो इसे भी अब हसना सीखना है।
लहरों से लड़ कर तुफा के उस पार जाना है
मंजिल की परवाह नहीं, हमें इस रास्ते को खूबसूरत बनाना है।
थोड़ा साथ तुम भी निभाना
भटकू मै अगर तो हाथ थाम तुम रास्ता दिखना, मेरी गलतियों पे कभी कभी डाट भी लगान, और प्यार आए तो गले लग जाना।
ज्यादा दूर तलक चलने का वादा नहीं मांगते
चार कदम ही चलना तुम साथ,
फिर चाहे चले जाना।
जिन्दगी मिली तो फिर मिलेंगे बस इतना वादा करते जाना।
मेरे हर सवाल का जवाब हो तुम बस ये ही तुम्हे बताना है, जब याद आए हम तो थोड़ा सा मुस्कुराना, तुम्हरे एहसास में हम अब भी सामिल है, इससे ज्यादा हमे और क्या पाना।
अब ये बाते यही अधूरी रहने दो,
अधुरी बाते तुमसे, फिर से मिलना का कोई तो बहाना हो।
तुम्हारे बिना कैसा है हाल, क्या बताएं
सब आंखो से पढ़ लेते हो, कैसे तुमसे कुछ छुपाए
बस इसी बहाने तुम आंखे पढ़ने आ जाना, हम कहेंगे नहीं पर तुम हमारी बाते सुनने आ जाना
मेरे हर सवाल तुमको धुंडते है, तुम बस जवाब बनके आ जाना।






© @kajalgupta