...

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गले
न्याय की आश में,
चाहत की प्यास में,
कुछ मौन हो जाते गले ।
जीते रहते कुछ गले गले,
कहता मन क्यों गले,,
काटते नही क्यों गले,
जिए हम , चल बढ़ चले ।
गंगा किनारे के अधजले ,
महलम उन्हें क्या मिले,
मलहम उन्हें क्या मलें,
जो पंचभूत में भी ना मिले ।
© Vatika
#nameit