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महबूब का अंदाज
तुम्हें कभी पूरा लिखूँ कभी अधूरा लिखूँ,,,
मैं रातों में बैठकर तुम्हें 'सवेरा' लिखूँ..!
मैं जब भी लिखूँ बस इतना लिखूँ.,,,
मुझे 'तेरा' और तुझे 'मेरा' लिखूँ....
बिल्कुल जुदा है मेरे महबूब की सादगी का अंदाज,
नजरे भी मुझ पर है और नफरत भी मुझसे ही !!"
मैं रातों में बैठकर तुम्हें 'सवेरा' लिखूँ..!
मैं जब भी लिखूँ बस इतना लिखूँ.,,,
मुझे 'तेरा' और तुझे 'मेरा' लिखूँ....
बिल्कुल जुदा है मेरे महबूब की सादगी का अंदाज,
नजरे भी मुझ पर है और नफरत भी मुझसे ही !!"
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