...

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सुहागरात
मुझे सुनना है तुम्हारे होंठो से,
सुहागरात वाली मादक सिसकियाँ,
जब तुम और मैं खो जाए एक दूजे में,
और मैं तुम्हारे होंठो का रस पान करूँ,
तुम देना साथ मेरा अपनी उत्तेजना से,
जब मैं तुम्हे प्रेम की प्रकाष्ठता पर ले चलूं,
पहले तुम रहना सुहाग की सेज पर,
और मैं तुम्हारा वरन करूँ...!

भिगोकर एक दूसरे को हम प्रेम सरिता में,
एक दूसरे पर विश्वास की बरसात करें,
होकर निर्वस्त्र तुम और मैं,
हो जाये सम्पूर्ण प्रेम के रिश्ते में,
करूँ मैं चुम्बन तुम्हारे होंठो का,
पुनः तुम्हारे स्तनों को भी चुम लूं...!

जब हो जाये अर्धरात्रि प्रेम से परिपूर्ण,
तब तुम्हारे नाभि में जीभ से अपनी शरारत करूँ,
तुम देना साथ मेरा उस शरारत में,
जब तुम्हारी बाहों के दरमियान,
मैं अपने देह को रखूँ,
तुम थाम लेना मेरे ज़िस्म को अपने जिस्म में,
और मुझे अपनी आगोश में भर लेना,
सुहाग की रात बीतेगी प्रेम से पूर्ण,
जब तुम मुझे अपनी सांसो में समा लेना..!

करके प्रेम तुम्हारे हर एक अंग को मैं,
प्रेम की अनुभूति को नस नस में भर दूंगा,
तुम्हारे होंठो को चूमकर,
तुम्हारे बदन में सिरहन यूँ भर दूंगा,
जब उठाओगी तुम नितम्ब कुछ यूँ,
तब मेरे पुरुषांग को अपने स्त्रीत्व अंग में,
कुछ यूं समाहित होने दे देना,
कि पिपासा प्रेम की मिट जाए सुहागरात में,
और रिश्ता पति पत्नी का यूँ बन जाये,
कि तुम्हारे विश्वास में मैं खरा उतरूँ,
और मेरे यकीन पर तुम यकीन रखना,
प्रेम की उस रात्रि को होकर निर्वस्त्र हम दोनों,
पहन लेंगे एक दूसरे के प्रेमातुर ज़िस्म को,
और रोक लेंगे उस हर एक पल को,
तुम और मैं अपनी यादों की दुनिया में,
क्योंकी वो रात सुहाग वाली होगी,
तुम्हारे और मेरे प्रेम के पूर्ण हो जाने की रात...!

© Rohit Sharma "उन्मुक्त सार"