...

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मुसाफिर
हम मुसाफिर नही थे यारों - 2

मगर जबसे उनसे रास्ते में मुलाकात हुई है,
तबसे मंजिल दूर होने की आश लगाएं बैठे है।

चाहते मंजिल को जरूर थे,
मगर रास्तों से प्यार कर बैठे,
और मुसाफिर शौख से बन गए।

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