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ख़्वाइश
ख़्वाइश

क्या हासिल होगा ज़िन्दगी की उड़ान भरने से,
ख़्वाइश नहीं मेरी कि ऊंचे मकामो पे मैं चढूं ।

क्या मिलेगा जो दुनिया कि दौलत मिल भी जाएगी,
ख़्वाइश नहीं कि हाकिम बनके मैं किसिपे राज करूँ।

ज़िन्दगी हसीन है इसे मोहब्बत से गुज़ारो दोस्तों ,
ख़्वाइश मेरी है सिर्फ और सिर्फ हलीम बनके जियूं ।

हो सके तो इस सफ़र में सभी को साथ लेकर के चलो,
ख़्वाइश नहीं मेरी कि दुनिया से बिलकुल मुख़्तलिफ़ चलूँ।

ये बदन तो ख़ाक है ख़ाक में मिल जायेगा "रवि",
ख़्वाइश नहीं कि कभी अपने आप पे मैं ग़ुरूर करूँ।

राकेश जैकब "रवि"