नींद
नींद उड़ी मैं बावली हुई
रातों को जो मैं जागती
ख्वाहिशें सारें मुझमें पनाह चाहती
जैसे मैं कोई अधूरी कहानी
अरमां सभी बिखरे है
जो ख़्वाब लिए आंखों में
सोने चली
नींद उड़ी मैं बावली हुई
जैसे छन से टूटे सपना कोई
रूठे पलकों से नींद है
रुसवा सारी रातें
मुझको बेचैन कर जगाती
चाहत लिए मैं नींद की
उसकी यादों में दिल खो जाता
फिर ये निगाहें थक रो पड़ता
जाने कैसे कब रोते रोते
तकिया भीगों आंसुओं के सैलाब में
आंखें बंद मैं सो जाती
पर कभी कभी लगता
नींद है मुझसे खफा खफा
तभी तो वो बार बार होता...
रातों को जो मैं जागती
ख्वाहिशें सारें मुझमें पनाह चाहती
जैसे मैं कोई अधूरी कहानी
अरमां सभी बिखरे है
जो ख़्वाब लिए आंखों में
सोने चली
नींद उड़ी मैं बावली हुई
जैसे छन से टूटे सपना कोई
रूठे पलकों से नींद है
रुसवा सारी रातें
मुझको बेचैन कर जगाती
चाहत लिए मैं नींद की
उसकी यादों में दिल खो जाता
फिर ये निगाहें थक रो पड़ता
जाने कैसे कब रोते रोते
तकिया भीगों आंसुओं के सैलाब में
आंखें बंद मैं सो जाती
पर कभी कभी लगता
नींद है मुझसे खफा खफा
तभी तो वो बार बार होता...