...

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नींद
नींद उड़ी मैं बावली हुई
रातों को जो मैं जागती
ख्वाहिशें सारें मुझमें पनाह चाहती
जैसे मैं कोई अधूरी कहानी
अरमां सभी बिखरे है
जो ख़्वाब लिए आंखों में
सोने चली
नींद उड़ी मैं बावली हुई
जैसे छन से टूटे सपना कोई
रूठे पलकों से नींद है
रुसवा सारी रातें
मुझको बेचैन कर जगाती
चाहत लिए मैं नींद की
उसकी यादों में दिल खो जाता
फिर ये निगाहें थक रो पड़ता
जाने कैसे कब रोते रोते
तकिया भीगों आंसुओं के सैलाब में
आंखें बंद मैं सो जाती
पर कभी कभी लगता
नींद है मुझसे खफा खफा
तभी तो वो बार बार होता मुझसे बेवफ़ा
इंसानों की फितरत में था अब तक जो
जाने कैसे नींद में है आ गई
जो ये मुझसे ही दगा कर जाती
नींद उड़ी मैं हुई बावली
ये न दिन न रात न वक्त न हालात देखती
बस अपनी ही करती जाती
छोड़ बेहाल जाने कहां हो जाती गुमनाम
ज़रूरत होती तब साथ नहीं देती
बीन कहें चली जाए आगाह कियें बीन आ जाती
जाने ऐसी नियत कहां से लाती
कभी कभी ये नींद बड़ी बेरहम हो जाती
बेगैरत की सीमाएं भी पार कर जाती
ये नींद जब चली जाती
मैं अंधेरों की दुनियां में गुम हो
पागलपन की हदें भी तोड़ जाती
होश संभाल न पाती
सारी रातें आहें भरती रह जाती
सुबह थकी थकी नजरों से जो मैं सबको देखती
सारा इल्ज़ाम मेरी लापरवाही की होती
जो मैं बेपरवाह हो रातों को हूं जगती
असल बात किसी से नहीं कहती
इसलिए गलती सारी मेरी होती
नींद जो नहीं आती
नींद उड़ी मैं बावली हुई
~ Gia⊰⊹ฺ
© The Unique Girl✨❤️