...

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कैद,,,,
माज़ी के कुछ लम्हों में,,,
किताबे हयात के सफहों में,,
मेरी जिंदगी की किताब में,,,
मेरी ख्वाहिश में ख्वाब में,,
कुछ माहो साल ऐसे भी गुजरे हैं,,
जैसे हसीं मोती फर्श पर बिखरे हैं,,
जैसे फूल खिले हैं निखरे हैं,,,
फिर फूल मुरझा गए हों जैसे,,
दो दिल जब मिल के बिछड़े हैं,,
वो बीते हुवे लम्हे बहुत याद आते हैं,,
माजी के झरोखे यादों की खुशबू साथ लाते हैं,,
वो और दुनिया थी जिसे छोड़ आई हूं,,,
मोहब्बत की गली से राह मोड़ आई हूं,,,
मैं कैदी हूं बीते गुजरे ज़माने की,,
कोशिश जारी है नए जहां से कदम मिलाने की,,,
© Tahrim