...

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समझ
कोई बात मुझको भी तो समझ आए
किसी रात मुझको भी तो सुकूं आए
मै इस जहां की मक्कारी से घायल हूं
मुझे कोई आइना तो नज़र आए
कोई बात मुझको भी तो समझ आए ।
कुछ हसीन हैं तो उनको हुस्न या नशा है
कोई पैसे, रुतबे, मतलब में फसा है
मै खुद को कैसे बचाऊं इस जहर से
हो कोई दोस्त,तो ही मेरे करीब आए
कोई बात मुझको भी तो समझ आए ।
दीवारों पे लिख रक्खी हैं तारीखे
वाकए दिलों में फासले बना रक्खे हैं
ये दिखावे के रिश्तेदार हैं सभी
झूठ के सिलसिले बना रक्खे हैं
मै जाऊं भी तो किसके पास जाऊं?
सबने दिलों में जलजले जला रक्खे हैं
कोई अब आब बन ये अगन बुझाए
कोई बात मुझको भी तो समझ आए ।
चुप रहा तो जलता रहा अंतर अंदर
मै मिट रहा हूं कोई समन्दर बनकर
तू मेरे दर्द का दायरा तो देख
मै पत्थर बना पानी बनकर
कोई पत्थर अब इस पत्थर से न टकराए
कोई बात मुझको भी तो समझ आए ।
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