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जिंदगी
ज़िन्दगी सहरा सी हुई जाती है
हर पल रेत का दरिया हुई जाती है
अपनों से ही चेहरा छुपा कर घूमता है आदमी कुदरत भी बेरहम हुई जाती है
एक बेचैनी इक भटकन और ना जाने क्या-क्या हुई जाती हैं
बहुत प्यार किया तुझसे ऐ ज़िन्दगी अब तो मेरे सब्र की भी इन्तहा हुई जाती है
हर पल रेत का दरिया हुई जाती है
अपनों से ही चेहरा छुपा कर घूमता है आदमी कुदरत भी बेरहम हुई जाती है
एक बेचैनी इक भटकन और ना जाने क्या-क्या हुई जाती हैं
बहुत प्यार किया तुझसे ऐ ज़िन्दगी अब तो मेरे सब्र की भी इन्तहा हुई जाती है
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