...

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यादों की गालियाँ (सूनी सी)
जब मैं तुम्हारी गलियों में आती,
मुझे वो दीवानगी याद आती,
मुझे वो तन्हाई सताती,
मुझे वो बेकरारी तुम्हारी याद दिलाती,
मुझसे वो हर घड़ी सवाल उठाती,
मुझे पर वो गालियाँ हक़ जताती,
मेरी आँखों में आँसू और,
लबों पर खामोशी छा जाती,
मैं कुछ न कह पाती,
मैं खामोश सी रह जाती,
मैं मुरझा जाती,
और बिल्कुल थम सी जाती,
मैं पलक तक ना जपकाती,
मैं तुम्हारी यादों में गुम सी हो जाती,
मैं वो बीती यादों के खट्टे- मीठे पल चुराती,
मैं गुमनाम- गुमसुम सी हो जाती,
इतनी खामोश के चाह कर भी कुछ कह न पाती,
वो याद दिल में बस जाती,
जब मैं तुम्हारी गलियों में आती.....

© Glory of Epistle