...

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यह कैसी पर्दे दारी हैं
यह कैसा बेपर्दा पन हैं,
ना मिलता हे वह देह के व्यापारो में,
ना मिलता हे वह मंदिर-मस्जिद-गुरुद्वारों में,
ना मिलता हे वह मस्तक की लकीरों में,
ना मिलता हे वह पाखंडी फकीरों में,

वह मिलता हे भावनाओं के कर्ज दारों में
सिख-हिंदू-मुसलमानों में,
वह मिलता हे पर्दे के किरदारों में
बेपर्दे-दारों में,

वह मिलता हे गरीबों की जवानी में
किसानों की किसानी में,
वह मिलता हे फौजियों की कुर्बानी में
दीवाने हिंदुस्तानी में,

वह मिलता हे ख्वाहिशे सुनामी में
फकीरों की नूरानी में,
वह मिलता हे बुढ़ापे में जवानी में
गैरों में अफगानी में,

वह मिलता हे भीम के बल में
मां के आंँचल में,
वह मिलता हे श्रीकृष्ण की वाणी में
मीरा दीवानी में,
महाभारत तूफानी में,
वह मिलता हे ख्वाहिशे हिंदुस्तानी में।।

© divu