आखिरकार जीना सीख गए !
पता नही कितने चेहरे छिपे है इन बादलों के पीछे,
कुछ मुखौटे उतरे है, कुछ अभी भी बाकी है,
वफा को दफनाकर सब चढ़े है सीढ़ियां बेवफा की,
रेत सी बिखरी हुई थी इंसानियत, गमंड ने उसे भी उड़ा दि,
कलयुग में न रावण है न ही कौरव - है तो बस इंसान,
मारने से मरने तक सब कर सकते है वो,...
कुछ मुखौटे उतरे है, कुछ अभी भी बाकी है,
वफा को दफनाकर सब चढ़े है सीढ़ियां बेवफा की,
रेत सी बिखरी हुई थी इंसानियत, गमंड ने उसे भी उड़ा दि,
कलयुग में न रावण है न ही कौरव - है तो बस इंसान,
मारने से मरने तक सब कर सकते है वो,...