...

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एकदूजे के लिए
मुझे पता नहीं तुम कितने हो मुझमें
पता नहीं कितनी मैं तुममें हूँ.... पर
आधे अधूरे हम एक दूसरे से मिलकर
पुरे हो जाते हैं!!
ज़ब कभी भी मिलने आऊ तुमसे
मेरे साथ साथ चलना तुम
अपनी उँगलियाँ मेरी उँगलियों में पिरो देना
पैदल चलते चलते थक जाऊ मैं
तुम कहीं बैठ जाना......
मैं अपना सिर तुम्हारे कांधे पर रख लूँगी
तुम्हारी बाहों का सहारा मिलेगा
एक ज़िन्दगी यूँ ही बैठकर बिता देंगे हम
गफ़्तगू करते हम क्षितिज पार चलेंगे !!