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आशिया
तेरे नाम का जिक्र जब भी जुबां पर आ जाता है,
बेदर्दी तेरा इश्क़ मुझे बेहद तड़पा जाता है,
इजहार न कर सके हम तुमसे अपनी मोहब्बतों का,
यह गिला आज भी हमें बहुत सता जाता है !
आशियाना ए आरजू बना बैठे हम तेरी मोहब्बत में,
इसारे गलत ले बैठे हम तेरी आँखों के,
आब-ए-आईना तेरे हुस्न का अब्द बन बैठा,
तेरे नाम की नज़्म का कातिव हो बैठा !!
यारों की महफ़िल में आफ़ताब थे हम भी कभी,
सबके लिए आज एक गुमनाम ख्याल हो गए,
अपने नाम के होते भी बेनाम हो चुके हैं,
गा़लिब तेरे गश़ में बेकार हो गए हैं !!
काश हकिकत ए दास्तान हमने जाहिर की होती,
खुदा कसम आज हमारी यह हालत न होती,
शायर न हो पाते हम कुछ अल्फ़ाजों के,
हमारे अपनों को हमसे कोई शिकायत न होती !!
© Vishnukashyapji
बेदर्दी तेरा इश्क़ मुझे बेहद तड़पा जाता है,
इजहार न कर सके हम तुमसे अपनी मोहब्बतों का,
यह गिला आज भी हमें बहुत सता जाता है !
आशियाना ए आरजू बना बैठे हम तेरी मोहब्बत में,
इसारे गलत ले बैठे हम तेरी आँखों के,
आब-ए-आईना तेरे हुस्न का अब्द बन बैठा,
तेरे नाम की नज़्म का कातिव हो बैठा !!
यारों की महफ़िल में आफ़ताब थे हम भी कभी,
सबके लिए आज एक गुमनाम ख्याल हो गए,
अपने नाम के होते भी बेनाम हो चुके हैं,
गा़लिब तेरे गश़ में बेकार हो गए हैं !!
काश हकिकत ए दास्तान हमने जाहिर की होती,
खुदा कसम आज हमारी यह हालत न होती,
शायर न हो पाते हम कुछ अल्फ़ाजों के,
हमारे अपनों को हमसे कोई शिकायत न होती !!
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