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मन का अपराध
#अपराध
मन मौन व्रत कर अपराध करता है
किस भांति देखो आघात करता है
व्यंग पर गंभीरता का प्रहार करता है
सच्चाई को देखने से इन्कार करता है
धर्म पर अनचाही पाबंदियां करता है
मनुष्य को बडा दुःख ग्रस्ति करता है
विचार स्वयं तक ही सीमित करता है
साहसी निर्बलता से बाधित करता है
ऐसा मन खुद से बड़ा छल करता है
आत्मा को जीवनभर दुखी करता है।





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