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गज़ल
ये ग़ज़ल कही गई है उन यारों के नाम
जो चमकते थे कभी उन सितारों के नाम

जो आशियाँ संभाले हैं कोमल कांधों पर
कभी तो दुआ करो उन दीवारों के नाम

कहाँ रहे वे ग़ज़ल कहने और सुनने वाले
ख़ामोशी शेर कह रही है अंधियारों के नाम

गुल, हुस्न, तितली, भँवरे सब फरेब ही हैं
मैं आखिर क्यों ग़ज़ल कहूँ बहारों के नाम ?

हज़ारों की भीड़ जोड़कर जो ये चिल्लाते हैं
नफ़ादार धंधा चला रहे हैं परवर्दिगारों के नाम

एक मुलाक़ात हो ही जाए, चाहे मन से न सही
जो तुमको मुझसे थे कभी उन करारों के नाम

ज़िन्दगी की राहों में याद बस वे ही आते हैं
अंजुमन सजाई जाती हैं मिलनसारों के नाम

गिरते,...