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वक़्त से होते दिन और रात;
वक़्त से होते दिन और रात;
वक़्त से हो ग्रीष्म शरद् ऋतु बरसात,
वक़्त की चाल यहाँ पे कोई नहिं जाने,
वक़्त को धैर्यवान पुरुष ही पहचाने,
वक़्त ही था धनुर्धर अर्जुन बन गए थे ब्रह्नलला,
जग जाहिर थी गाण्डीव धारी की बाण कला,
निमिष मात्र में कर देें दुश्मन का जो नाश,
वक़्त के चंगुल में फंस झेल रहे थे त्रास,
वक़्त ने उनको दिया आघात,
वक़्त से होते दिन और रात;
© प्रकाश
वक़्त से हो ग्रीष्म शरद् ऋतु बरसात,
वक़्त की चाल यहाँ पे कोई नहिं जाने,
वक़्त को धैर्यवान पुरुष ही पहचाने,
वक़्त ही था धनुर्धर अर्जुन बन गए थे ब्रह्नलला,
जग जाहिर थी गाण्डीव धारी की बाण कला,
निमिष मात्र में कर देें दुश्मन का जो नाश,
वक़्त के चंगुल में फंस झेल रहे थे त्रास,
वक़्त ने उनको दिया आघात,
वक़्त से होते दिन और रात;
© प्रकाश
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