सूखे ओठ
पत्तों को पिलाए पानी,शीत लेहर आने से बेदम कई जवानी | थीर थीर बाजे बत्तीसी,आज बिस्तर अभिमनित बन छावनी
राहें कई हुई अधभीगी,कलचुल की चालों को अब बड़ना है
उठना,वो भी सुबह!कहते क्यों नहीं?हिमालय!भी चड़ना है
जबडे हवाएं खीचे,घाल निकासे ,दातो के...
राहें कई हुई अधभीगी,कलचुल की चालों को अब बड़ना है
उठना,वो भी सुबह!कहते क्यों नहीं?हिमालय!भी चड़ना है
जबडे हवाएं खीचे,घाल निकासे ,दातो के...