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हम क्यों जी रहे है दोहरे कल के लिए
एक कल गुज़रा है यहां दूसरे कल के लिए
क्यों है वक़्त के इसने फ़ासले कल के लिए
यहां तो रात सिरहाने आ कर भी चली गई
ये कल बुन रहा था नए फ़लसफ़े कल के लिए

कोई कहकर गुज़रा तो कोई कहने आ रहा है
ज़रा हम भी तो देखें यहां आइने कल के लिए
गुज़रे हुए वक़्त की क्या कहानी क्या निशानी
कल को छोड़कर ऐसे घुले-मिले कल के लिए

आज की महफ़िल कब फ़िक्र के ज़िक्र में ढ़ल गई ...