सावन: मौसम- ए- इश्क़
वक़्त की बाँह थामें यादें बरकरार हैं…
सुने कोई इस मौसम- ए- इश्क़ की सदाएँ,
ये भी तो कितना कुछ कहने को बेकरार है।
ये बारिशें उन्मुक्त गगन में बिखेर जाती हैं कुछ अनकहे- से अल्फ़ाज़…
सुने कोई तो सुनाई देगी,
बारिशों का धरा से विरह और उसकी खामोश आवाज़।
बारिश की इन बूँदों के संग बहने लगा है कारवां यादों का…
उसने पिछले सावन जो वादे किये थे न मोल रहा अब उन वादों का।
हजारों टुकड़ों में ख्वाहिशें बिखर गई टूटकर…
प्रेम की राह का सफ़र भी अजीब रहा,
मंज़िले चली गई हमेशा के लिए हमसे रूठकर।
ये बूंदें कर जाती हैं कुछ शरारतें, कुछ नादानियाँ…
संग अपने ले आती हैं वो प्रेम की निशानियाँ।
रेत- सी ये ज़िंदगी हर घड़ी निरंतर चल रही है…
ये प्रेम की ज्वाला है बारिशों में भी जल रही है।
हर सावन की पहली बारिश में…
सोचती हूँ,
अभी भी दिल के किसी कोने में कोई ख्वाहिश, कोई अरमान बाकी है या नहीं।
जाते- जाते वो संग अपने मेरे चेहरे की मुस्कान ले गया…
सोचती हूँ, इस जिस्म में जान बाकी है या नहीं।
एक अकेले खंडहर की तरह हूँ मैं…
जहाँ सिर्फ़ तेरी यादों का बसेरा है,
इस जीवन के सफ़र में अब बादलों की काली घटा छा गई…
बस अब अंधेरा ही अंधेरा है।
निशब्द, ख़ामोश गहराइयों में सिमट कर रह गई है किस्मत…
प्रेम को जीना ही है सिर्फ़ जन्नत।
शहर से उसके…
बहते हुए छूकर निकल गई है मुझको ये फ़िज़ा,
बारिश की इन बूँदों से खिल उठी है ये धरा।
हज़ारों मायूसियों के बावजूद जहाँ जलती रहे प्रेम की लौ…
कुछ इस तरह का होता है प्रेम पावन,
इन यादों में ही गुज़र जाता है हर बार मेरा सावन…!!!!!
-ज्योति खारी
© jkhari
सुने कोई इस मौसम- ए- इश्क़ की सदाएँ,
ये भी तो कितना कुछ कहने को बेकरार है।
ये बारिशें उन्मुक्त गगन में बिखेर जाती हैं कुछ अनकहे- से अल्फ़ाज़…
सुने कोई तो सुनाई देगी,
बारिशों का धरा से विरह और उसकी खामोश आवाज़।
बारिश की इन बूँदों के संग बहने लगा है कारवां यादों का…
उसने पिछले सावन जो वादे किये थे न मोल रहा अब उन वादों का।
हजारों टुकड़ों में ख्वाहिशें बिखर गई टूटकर…
प्रेम की राह का सफ़र भी अजीब रहा,
मंज़िले चली गई हमेशा के लिए हमसे रूठकर।
ये बूंदें कर जाती हैं कुछ शरारतें, कुछ नादानियाँ…
संग अपने ले आती हैं वो प्रेम की निशानियाँ।
रेत- सी ये ज़िंदगी हर घड़ी निरंतर चल रही है…
ये प्रेम की ज्वाला है बारिशों में भी जल रही है।
हर सावन की पहली बारिश में…
सोचती हूँ,
अभी भी दिल के किसी कोने में कोई ख्वाहिश, कोई अरमान बाकी है या नहीं।
जाते- जाते वो संग अपने मेरे चेहरे की मुस्कान ले गया…
सोचती हूँ, इस जिस्म में जान बाकी है या नहीं।
एक अकेले खंडहर की तरह हूँ मैं…
जहाँ सिर्फ़ तेरी यादों का बसेरा है,
इस जीवन के सफ़र में अब बादलों की काली घटा छा गई…
बस अब अंधेरा ही अंधेरा है।
निशब्द, ख़ामोश गहराइयों में सिमट कर रह गई है किस्मत…
प्रेम को जीना ही है सिर्फ़ जन्नत।
शहर से उसके…
बहते हुए छूकर निकल गई है मुझको ये फ़िज़ा,
बारिश की इन बूँदों से खिल उठी है ये धरा।
हज़ारों मायूसियों के बावजूद जहाँ जलती रहे प्रेम की लौ…
कुछ इस तरह का होता है प्रेम पावन,
इन यादों में ही गुज़र जाता है हर बार मेरा सावन…!!!!!
-ज्योति खारी
© jkhari