...

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उठा लाईं
वो आईं थीं तो कुछ नया लातीं ,
ये क्या पुराना घाव उठा लाईं ।

अभी दरकतीं है पुरानी यादों की किरचें ,
नए कांच के गुलदान में फूल पुराना उठा लाईं ।

क़त्ल करना था तो बस चूम लेतीं ,
नाहक़ हाथ में खंजर उठा लाईं ।

मिटाकर हर खुशी कहतीं हैं मुस्कुराया करो ,
ज़िन्दगी ने कम दिए थे, जो तुम भी तन्ज उठा लाईं।

सफ़र पे थीं तो सामान थोड़ा कम लातीं ,
तुम तो मेरे माज़ी का कच्चा- चिट्ठा उठा लाईं।

ज़ालिम को रहम न आया "खाक़" की हालत पर ,
खुली जुल्फें,लरज़ते होंठ, आंखों की सुरमेदानी उठा लाईं।
© khak_@mbalvi