...

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हाँ बेटी हूँ बेटी कहलाती हूँ मैं
हाँ बेटी हूँ बेटी कहलाती हूँ मैं
बाबुल की दहलीज पर पैदा हुई हूँ
मटकते मटकते चलना सीखी हूँ मैं
धीरे धीरे जाने कब बड़ी हो जाती हूँ मैं
हाँ बेटी हूँ मैं बेटी कहलाती हूँ मैं

इठलाती हूँ बलखाती हूँ लहराती हूँ
आसान राहों में भी लड़खड़ाती हूँ मैं
हाँ बेटी हूँ मैं बेटी कहलाती हूँ मैं

रोती हूँ चुप हो जाती हूँ फिर मुस्कराती हूँ
टूटती हूँ बिखरती हूँ फिर भी सम्हल जाती हूँ मैं
हाँ बेटी हूँ मैं बेटी कहलाती हूँ मैं

ठुमकते ठुमकते चलते चलते बड़ी हो जाती हूँ
होकर विदा बाबुल के घर से ससुराल को चली जाती हूँ
डरती हूँ सहमती हूँ मगर वहाँ की हो जाती हूँ
हाँ बेटी हूँ मैं बेटी कहलाती हूँ मैं

होती थी कभी बच्ची आज माँ बन जाती हूँ
भूल कर खुद को जिम्मेदारी उठाती हूँ
बदलते वक़्त के साथ मै भी बदल जाती हूँ
हाँ बेटी हूँ बेटी कहलाती हूँ मैं

जानते हैं बिन बेटी के घर सूना रह जाता है
परिवार की कड़ी अधूरी रह जाती है
फिर भी जाने क्यों बेटी कोख में मार दी जाती है
हाँ बेटी हूँ बेटी कहलाती हूँ मैं

सम्हालते ही होश पाबंदी में बंध जाती हूँ
हौसले से तो ऊँचे गगन को छूना चाहती हूँ
मगर सामाजिक बेड़ियों में कैद कर दी जाती हूँ
हाँ बेटी हूँ बेटी कहलाती हूँ मैं