...

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अधूरा इश्क़
उनकी बेवफ़ाई की अदा को हमने
कुसूर अपना समझ कर भुला दिया

तरसते रहे उनकी एक झलक को दिन रात
ना ख़त, ना पैगाम, यारी का ये कैसा सिला दिया
बेवफ़ाई करते गए ख़ुद से
यादों का फिर हमने सहारा लिया।

मौसिम बदलता गया
नाम उसका धुंधलाता गया
प्यार को उसके हमने सीने में कहीं छिपा दिया
भूलाने उनको अरसा बीत गया
ख़ुद को ढूँढने ज़माना लगा दिया।

और आज आ पहुँचे है वो हमारी चौखट पर
वहीं चाहत ढूँढते,
हमसे मिलने हमारी ही आशिक़ी का वासता दिया

जा कर कह दो उस दगाबाज़ से
इस अनचाहे रिश्ते से उसको रिहा किया
मोहब्बत को उसकी हमनें
उसके नज़रों के सामने दफ़ना दिया
ख़ुद से वफ़ा कर, इश्क़ अधूरा पूरा किया।

© Soni

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