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#मजबूरी
#मजबूरी
झूठ नहीं मजबूरी है,
तुम जानों क्या क्या ज़रूरी है;
नंगे बदन की भी अपनी धुरी है,
प्यार के लिए जिस्म नहीं जरूरी है
झूठ नही मजबूरी है ,
घरवालों की इज़्ज़त भी जरूरी है
प्यार में रूह मिलना जरूरी है,
तो फिर जिस्म का मिलन क्यूं जरूरी है
चाहत अगर जिस्म की ही जरूरी है
तो जिस्म के बाजार भी जरूरी है.?
ये जरूरत भी क्या जरूरी है ,
जो अपराध से होती पूरी है।
घर की इज्जत जरूरी है,
तो किसी और की इज्जत क्यों नही जरूरी है।
झूठ नहीं मजबूरी है ,
तुम जानो क्या क्या जरूरी है,
नंगे बदन की भी अपनी धुरी है ।
© nishu
झूठ नहीं मजबूरी है,
तुम जानों क्या क्या ज़रूरी है;
नंगे बदन की भी अपनी धुरी है,
प्यार के लिए जिस्म नहीं जरूरी है
झूठ नही मजबूरी है ,
घरवालों की इज़्ज़त भी जरूरी है
प्यार में रूह मिलना जरूरी है,
तो फिर जिस्म का मिलन क्यूं जरूरी है
चाहत अगर जिस्म की ही जरूरी है
तो जिस्म के बाजार भी जरूरी है.?
ये जरूरत भी क्या जरूरी है ,
जो अपराध से होती पूरी है।
घर की इज्जत जरूरी है,
तो किसी और की इज्जत क्यों नही जरूरी है।
झूठ नहीं मजबूरी है ,
तुम जानो क्या क्या जरूरी है,
नंगे बदन की भी अपनी धुरी है ।
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