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महसूस होता है ऐसे जैसे मानो …
स्वार्थ में थोड़ा रंग निःस्वार्थ का मिला देते तो…
स्वार्थ की परिभाषा ही बदल जाती
यकीनन समझ भी बदल जाती
प्रेम में विश्वास भी बढ़ जाता और
रिश्ते भी बदल जाते
मगर एक दौर ऐसा चल पड़ा है
आजकल तो स्वार्थ का….
हवा में उसी की तो रवानी है
ऐसे में घुटन हो रही है .. बहुत अधिक
सांसें भी मानों …. अटकी हों कंठ में
इस तरह रिश्तों को निभाना कुछ
बोझिल सा हो रहा है….
हां…
महसूस होता है ऐसे जैसे मानो …
सूरज गश खाकर जमीं पर आ गिरा हो
.🌹❤️🌹
© राइटर. Mr Malik Ji...✍
स्वार्थ की परिभाषा ही बदल जाती
यकीनन समझ भी बदल जाती
प्रेम में विश्वास भी बढ़ जाता और
रिश्ते भी बदल जाते
मगर एक दौर ऐसा चल पड़ा है
आजकल तो स्वार्थ का….
हवा में उसी की तो रवानी है
ऐसे में घुटन हो रही है .. बहुत अधिक
सांसें भी मानों …. अटकी हों कंठ में
इस तरह रिश्तों को निभाना कुछ
बोझिल सा हो रहा है….
हां…
महसूस होता है ऐसे जैसे मानो …
सूरज गश खाकर जमीं पर आ गिरा हो
.🌹❤️🌹
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