khud ke liye Apnapan..
दिवारो में कैद, कुछ-कुछ सोचता रहता हूं मैं
कुछ पाने की मुझे भूख तो है
जुबान से चुप, आंखों से देखता हूं, और अपने आप से बोलता रहता हूं मैं
इस आज़ादी की नाम की हवा, मैं बंदिश तो है
अब सोने में आराम ही कहां है, अब मुझे प्यास ही कहां है?
खुद से लड़ूं, चलता रहूं, सबके साथ रहूं, इसमें सुकून ही कहां हैं?
जैसे मैं खुद को देखता हूं, तो ऐसा लगता है एक जमाना पीछे निकल गया
फूलों से पूछता हूं, अपनों से टूटने की सजा कैसी है..
© Shoryu
कुछ पाने की मुझे भूख तो है
जुबान से चुप, आंखों से देखता हूं, और अपने आप से बोलता रहता हूं मैं
इस आज़ादी की नाम की हवा, मैं बंदिश तो है
अब सोने में आराम ही कहां है, अब मुझे प्यास ही कहां है?
खुद से लड़ूं, चलता रहूं, सबके साथ रहूं, इसमें सुकून ही कहां हैं?
जैसे मैं खुद को देखता हूं, तो ऐसा लगता है एक जमाना पीछे निकल गया
फूलों से पूछता हूं, अपनों से टूटने की सजा कैसी है..
© Shoryu