...

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एक रिश्ता ऐसा भी ,एक किस्सा ऐसा भी
एक रिश्ता ऐसा भी
एक किस्सा ऐसा भी
बताऊं क्या तुमको
मिला एक यार ऐसा भी ।

जब हुई मुलाकात पहली बार
थे अनजान दोनो किरदार
जब बैठे थे वो साथ
शुरू होने लगी दोनो में बात ।

कटने लगी अनजान शहर में दोनो की रात
एक दूसरे को वो बताते थे वो अपनी स्टोरी
हां करते थे वो शरारते भी थोड़ी थोड़ी
पूरे शहर में मशहूर थी उन दोनों की जोड़ी ।

हां होते थे झगड़े उन में भी
रहते थे दोनों किसी ना किसी गम में भी
सुलझा लेटे थे हर एक परेशानी मील कर
अगले दिन दिखते थे दोनों खिलकर।

होती थी जलन ज़माने को
कुछ लोग आए उन्हें अलग कराने को
भड़ने लगे थे वो दोनों के कान
पर थे इस बात से अनजान
दोनों बन बैठे थे एक दूसरे की जान।

की थी लोगो ने खरीदने की कोशिश उन्हें भी
आए थे लोग बनाने को उन दोनों की नई पहचान
मगर थे इस बात से अनजान
की सस्ता नहीं था उन दोनों का ईमान।

होने लगे थे उन दोनो की दोस्ती के किस्से आम
आते थे वो दोनों मिलकर सबके काम
दे दी थी उन्होंने दोस्ती को एक नई पहचान
करते थे वो एक दूसरे की भावनाओ का सम्मान।
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