...

7 views

आज़ादी के अंतिम क्षण
जल रही हैं कोठियाँ,हैं रक्तरंजित रास्ते।
काँप उठी है पावन धरा,असहायों की चीत्कार से।
करुण क्रंदन सुनाई दे रहा,हर गली हर बाग से।
धधक उठी हैं वीर चिताएं,पवित्र प्रज्ज्वलित आग से।

है कैसी अजीब ये विडंबना,है कैसा हृयद-विदारक दृश्य ये।
हर तरफ पसरा विलाप ,हिम्मत भी अब पस्त है।
सहस्त्र वीरों के समूह आज यूँ पड़े मूर्छित से हैं,
काली घटाओं से घिरता हो रहा ये...