...

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डर
यह दो आंखे मिली हैं खुदा से
इन आंखों में सपने सजा तो सही,
होके आजाद परिणाम से
कुछ करने की चाह तू जगा तो सही।
संपूर्ण निष्ठा,स्वाभिमान से
एक झांक मन में तू लगा तो सही,
क्या बो हो रहा जो तू चाहता हैं
या बो मिल चुका जो तेरे लिए नहीं।
परिचय,प्रमाणपत्र के बिना
मन में छिपा है बो राक्षस कहीं,
जो तोलता हैं तुझे तेरे सपनों से
पर गिराता हरबार तेरे काबिलियत को हि।
बह फसात की जड़ हैं दो अक्षर का
जो आता समझ पर दिखता नहीं,
उखाड़ फैंक उस डर को मन से
जिसका बरबादी के सिवा कुछ काम ही नहीं।

© Chayanika Dani