...

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बस यही एक पल
मैं मीलों चली जाती हूं अक्सर
ख्यालों में टहलते हुए
नदी, पहाड़, झरनों के साथ–साथ बहते हुए
हवा के साथ बादलों में उड़ते हुए
एक– एक पल को उस पल में जीते हुए और
देखती हूं हर पल मौसम का रुख बदलते हुए
मैं मीलों चली जाती हूं अक्सर
ख्यालों में टहलते हुए
खेत– खलिहान जंगलों और रेत पर चलते हुए
और देखती हूं पल पल
खुद के डूबने के डर से परे
समंदर से रेत को आलिंगन करते हुए
मैं मीलों चली जाती हूं अक्सर
ख्यालों में टहलते हुए
और देखती हूं बाग में
खिलती कलियों को हंसते हुए
कल मिट जाने के हर खौफ से परे
मैं मीलों चली जाती हूं अक्सर
ख्यालों में टहलते हुए
और देखती हूं गौरए को
घोंसले बुनते हुए,
बिन पंख के शिशुओं के लिए
दाने चुगते हुए
कल उड़ जाएंगे छोड़ कर ये
इस डर से परे
मैं मीलों चली जाती हूं अक्सर
ख्यालों में टहलते हुए
इस पल को इस पल में जीते हुए
कल के हर फिक्र से परे
जो भी है बस यही एक पल है
खुद से कहते हुए
मैं मीलों चली जाती हूं अक्सर
ख्यालों में टहलते हुए.
✍️✍️✍️✍️© Ranjana Shrivastava
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© Ranjana Shrivastava