...

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उम्मीद
चांद आसमान पे
में जमीन पर
एक दूसरे को तकते
चांद मुझ पर तरस खा रहा
मैं चांद पर
चांद सोच रहा होगा
कितनी हरी भरी है दुनिया
फिर भी ये मौन क्यों
क्यों दिख रहा हताश
मैं सोच रहा
इतने तारों के बीच
क्यों चांद दिख रहा उदास
अजीब सी कश्मकश है
दोनो में......
इतनी रंगीनियों के बीच भी
एक दूजे को लग रहा
तन्हा।।तन्हा.....
शायद लोग भी यही सोचते हैं
एक दूसरे की स्थिति देख कर
हो सकता है चांद गलत हो
या फिर मैं....
मगर लगता तो ऐसा ही है
हम जीते उम्मीद पर
मरते ये एहसास लिए
अगले जन्म में
शायद लुत्फ उठाऊंगा
उम्मीद पर नही
अपने दम पर दुनिया जीत जाऊंगा
© Anubhav