...

20 views

हम और ये जहां
देखे कई दिन रात मैंने ढलते और गुज़रते
मेरी ज़िंदगी के वो भी हस्ते हस्ते
एक चीज़ ही तो सीखी और सिखाई है
मुस्कुराओ चाहे कभी खुद पे शामत ही आई है ।।
कई ठोकरे खाई इस अनचाहे से रास्ते पे
खड़े हुए और मुस्काए क्या हर्ज है हंसने में
हस्ते देखा है कई अपनों को अपनी हार पे
कल देंगे वही शाबाशी आख़िरकार में ।।
खुद को यूँ है संभाला जैसे खुद के ही हम फरिस्ते
नाम के अपने और पीछे सांप निकले कई रिश्ते
पर आज भी कभी ना की उनसे शिकायतें
कल शायद ये भी हारे जैसी हमारी ये मनाये थे ।।
डट के खड़े हम अकेले इस मुखौटो के बाज़ार मे
इसी ज़िद से तो हैं हम कामयाब और लाचार वे
मंज़िल की खोज है शायद वही हो खज़ाना
वही शायद ये झूठी रिवाज़ें न पड़े जाताना ।।

© Aadi...
#mythoughts