कंदम का पेड़।
यह कदंब का पेड़ अगर मौ होता यमुना तीरे मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे। ले देतीं यदि मुझे बाँसुरी तुम दो पैसे वाली किसी तरह नीची हो जाती यह कदंब की डाली। तुम्हें नहीं कुछ कहता पर मैं चुपके-चुपके आता उस नीची डाली से अम्मा ऊँचे पर चढ़ जाता। वहीं बैठ फिर बड़े मजे से मैं बाँसुरी बजाता अम्मा-अम्मा कह वंशी के स्वर में तुम्हें बुलाता। सुन मेरी बंसी को माँ तुम इतनी खुश हो जाती मुझे देखने काम छोड़ कर तुम बाहर तक आती। तुमको आता देख बाँसुरी रख मैं चुप हो जाता पत्तों में...