अफसाने
#LyricPoetry
अफसाना जो मैं लिखता हूं, कुछ सोचता मैं नहीं कुछ जानता ही नहीं बातें यूं तो हज़ार करता हूं, और तुझे पहचानता भी नहीं ।
अफ़साने में तुम हमारे, एक ख़्वाब साहो
सिसकते अंधेरों के बीच कहीं, एक ठहरी मेहताब सा हो । के दीदार को अब तरसना, है छोड़
दिया हमने
दूर हो तुम बेइंतहां, मगर मुझमे कहीं बेहिसाब सा हो ।
• अफसाना यह कैसा, जो हम सुनाते जा रहे हैंखो रहे हैं तुमको, और रफ्ता रफ्ता पाते जा रहे हैं।
© DEEPAK BUNELA
अफसाना जो मैं लिखता हूं, कुछ सोचता मैं नहीं कुछ जानता ही नहीं बातें यूं तो हज़ार करता हूं, और तुझे पहचानता भी नहीं ।
अफ़साने में तुम हमारे, एक ख़्वाब साहो
सिसकते अंधेरों के बीच कहीं, एक ठहरी मेहताब सा हो । के दीदार को अब तरसना, है छोड़
दिया हमने
दूर हो तुम बेइंतहां, मगर मुझमे कहीं बेहिसाब सा हो ।
• अफसाना यह कैसा, जो हम सुनाते जा रहे हैंखो रहे हैं तुमको, और रफ्ता रफ्ता पाते जा रहे हैं।
© DEEPAK BUNELA