...

1 views

झुठलाई नज़्म
अगर कहीं मिल जाएँ तो
तुम यह कह देना उनसे
धूल-ए-हयात से सनी मेरी सूरत
तो अब उनको रास नहीं आती

तुम्ही कृपया यह कहना उनसे
कि जीवन रुकावट कुछ भी नहीं है
शोर ध्वनियों से पके कानों को
चाहत-ए-आहट कुछ भी नहीं है।

क्योंकि ऐसा बिलकुल भी नहीं है
तितलियों के परों को सुनकर
मैं अकस्मात् ठहर जाता हों
रंग बन ढल शाम-ए-महफ़िल में
मैं अनायास सहर जाता हों

नन्ही बच्ची कि नन्ही उँगलियाँ
जब भी मुझे झटकती हैं
नन्हे पॉंवों में नन्ही बैंजनियाँ
जब प्रेम वश मटकती हैं
ऐसे नाज़ुक पलों में मुझको
एक कल्पित भयिष्य की याद
कभी भी नहीं सताती है
दुनिया अधिकार जताती है।
...