उलझन
उलझन मे है जिंदगी
इसे सुलझाऊँ कैसे
कहना तो बहुत चाहता हुँ
मगर बताऊँ कैसे
अंधेरा छा रहा है दिन मे भी अब
खुदाया इसे हटाऊँ कैसे
यू तो चिराग से भरा है आशियाना मेरा
बिन चिंगारी कम्बख्त जलाऊँ...
इसे सुलझाऊँ कैसे
कहना तो बहुत चाहता हुँ
मगर बताऊँ कैसे
अंधेरा छा रहा है दिन मे भी अब
खुदाया इसे हटाऊँ कैसे
यू तो चिराग से भरा है आशियाना मेरा
बिन चिंगारी कम्बख्त जलाऊँ...