...

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।। .. मैं.. ।।
।। अनंत हूं, विशाल हूं, कड़ में बसा ब्रह्मांड हूं,
अमोग हूं, अचूक हूं, बढ़ रहा जो हर समय,
मैं वो विस्तार हूं,
समाए है आज कल, समाया मुझ में ही काल है,
हर घड़ी सृजन हूं मैं हर घड़ी विनाश हूं,
मैं ही आकाश और, मैं ही पाताल हूं,
भू धरा का भार मैं, मैं समुद्र विशाल हूं,
अनंत हूं, विशाल हूं, कड़ में बसा ब्रह्मांड हूं...

ना अब रूकू मैं,ना अब थकू मै,
हर डगर मैं चलूं, मैं निडर ही रहूं
दूर मुझ से कुछ नहीं, बस मेरे सब हो रहा,
ख़्वाब हूं, जान हूं, ज़हन में जो जल रही,
मैं ही वो आग हूं..

रंग बन जाऊ मैं, इंद्रधनुष कहलाऊ मैं,
सूर्य का तेज़ लिए, नव सृजन कर जाऊ मैं,
तप रहा सीने में, जल रहा जो आंख में
मैं उस ख़्वाब को, सच कर के दिखाऊंगा,
हार का ना शोक हो, ना मन को भी ताप हो
मन ना निराश हो, चाहे राह एकांत हो,
चीर सीना हार का, विजय तू पाएगा,
एक हौसला और कर,
अंत से अनंत बन जायेगा ।।
© khanabadosh_2207

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