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खुद्दार स्त्री
बडा मुश्किल है यारों
खुद्दार स्त्री से प्यार करना
वो समझ जाती तुम्हारी चालाकियां
बहकती नहीं देख तुम्हारी शोखियां
किसी तारीफ़ की भूखी नहीं होती
किसी तोहफ़े से नहीं भरमाती
दरकिनार कर देती दोगलेपन को
अच्छे से समझती दिखावे भोलेपन को
खुद्दार स्त्रियां पढ़ लेती मन के भाव
और ज़वाब देना बखूबी आता इन्हें
अपनी उड़ान अपने बाजुओं से भरती
किसी के कंधे पे ये नहीं चढ़ती
खुद्दार स्त्री सबको बहुत चुभती है
पर दिल से आदर उसी का होता है
वो बस मुस्कुरा कर नहीं रह जाती
हक की लड़ाई खुद्दारी से लड़ जाती
वो नहीं चाहती की सब उसे पसंद करें
या उसकी जी हुजूरी करें
उसकी अपनी अलग ही दुनिया होती
जहां वो खुद की ही मालिक होती
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