...

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हर किसी के हिस्से में थोड़ा-थोड़ा रह जाऊँगा
हर किसी के हिस्से में थोड़ा-थोड़ा रह जाऊँगा
बन कर राख़ एक दिन मैं भी कहीं बह जाऊँगा

संभाल लेना जो टूटने लगूँ कभी किसी दिन मैं
हूँ तो लोहे सा लेकिन वार पर वार नहीं सह पाऊँगा

नाता नहीं रहा किसी भी नाते से अब मेरा
ज़ुबाँ ना खुलवाओ वर्ना क्या क्या नहीं कह जाऊँगा

हो सके तो लौट आना वापस तुम ही लहर की तरह
साहिल पर ही पड़ा रहूँगा वरना, मैं नहीं बह पाऊँगा

तुम्हें तुमसे मांगना है, तुम मुझे मुझसे मांग लेना
जानती तो हो ना मेरी आदत कि मैं नहीं कह पाऊँगा


© तिरस्कृत

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