पिता...
वो आवारा सा लड़का
अपनी मस्ती में यारों के संग जो रहता
घर की जिमीदारियों से जो रुकसत था
आज देखोंं जबसे बना एक बच्ची का पिता है
उसमें मानों कई रंगों का बसेरा है
दुनियां जहां की खुशियों ने भी उसमे डाला डेरा है
वो सरफिरा सा लड़का
कितने सब्र से आज है रहता
जो बेफ़िक्री में ज़वानी गुजारा
देखो फ़िक्र में सबकी दिन रात है रहता
अपनी चाहतों को थाम
घर परिवार की खुशियों की परवाह है करता
खुद है फटे कमीज़ में लेकिन घर की सभी जरूरतों का है बखूबी ख्याल रखता
परिवार की हर ख्वाहिश हैं पूरी करता
कैसे क्या करूं की खुश रहे परिवार मेरा हस्ती खेलती रहे ये जहां...
अपनी मस्ती में यारों के संग जो रहता
घर की जिमीदारियों से जो रुकसत था
आज देखोंं जबसे बना एक बच्ची का पिता है
उसमें मानों कई रंगों का बसेरा है
दुनियां जहां की खुशियों ने भी उसमे डाला डेरा है
वो सरफिरा सा लड़का
कितने सब्र से आज है रहता
जो बेफ़िक्री में ज़वानी गुजारा
देखो फ़िक्र में सबकी दिन रात है रहता
अपनी चाहतों को थाम
घर परिवार की खुशियों की परवाह है करता
खुद है फटे कमीज़ में लेकिन घर की सभी जरूरतों का है बखूबी ख्याल रखता
परिवार की हर ख्वाहिश हैं पूरी करता
कैसे क्या करूं की खुश रहे परिवार मेरा हस्ती खेलती रहे ये जहां...